पावसात भिजायला अणि निसर्गात रमायला खुप आवडत...

Friday, September 17, 2010

ती पहिली भेट चांदण्या रात्रीतली

ती पहिली भेट
चांदण्या रात्रीतली
स्मरते अजूनी रे
हुरहुर दोन मनातली

पहिल्याच भेटीत असे
केलेस वार नजरेचे
वाटले ऐकतच रहावे
स्वर तुझ्या गीतांचे

एकटक तुझी नजर
खिळली अशी मजवर
लाज आली गाली तुझ्या
मीही झालो अनावर

घायाळ ह्रुदय झाले
तुझ्या पहिल्या स्पर्शाने
हरवले गुलाबी स्वप्नात
त्या नव्या हर्षाने

मोहक क्षण तो एक एक
कितीदा तरी पुन्हा पुन्हा जगलो
ती धुंद एकांताची रात्र
नाही अजूनी विसरू शकलो .....

Tuesday, August 3, 2010

Tuesday, April 13, 2010

दर्द जो उभरा है अभी अभी ..जिसको समझा है अभी अभी

तू होगा समंदर -इ -इश्क किसी और के लिए फ़राज़ ..
हम तो रोज़ तेरे 'साहिल ' से प्यासे गुज़र जाते हैं !!
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वापसी का सफ़र अब मुमकिन ना होगा “फ़राज़ ”
हम तो निकल चुके हैं आँख से आंसू की तरह !
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यारों की वफाओं का भरोसा किया मैंने ..
फुल्लों मैं छुपाया हुवा खंजर नहीं देखा !!
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इन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे ..
मुझे रोक रोक के पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है ??"
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वफ़ा की लाज मैं उसको मना लेता तो अछा था ..
दिल की जंग मैं अक्सर जुदाई जीत जाती है !!
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मैं कभी ना मुस्कुराता जो मुझे ये इल्म होता ..
के हजारों ग़म मिलेंगे मुझे इक ख़ुशी से पहले !!
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वो जिस के नाम की निस्बत से रौशन था वजूद ..
खटक रहा है वही आफताब आँखों में !!
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वो रोज़ परिंदों की मिसाल देता है फ़राज़ ..
साफ़ नहीं कहता मेरा शेहेर छोड़ दे !!
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अनजान बन कर मुझसे पूछते है के कैसे हो ,
के मुझे जानता नहीं के मैं तुझी में रहता हूँ ..
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निकाल दे फ़राज़ दिल से ख्याल उस का . .
यादें किसी की तकदीर बदला नहीं करती !!
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दिल की बस्ती भी अजीब बस्ती है ..
लूटने वाले को तरसती है !!
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इस तरह गौर से मत देख मेरे हाथ ऐ फ़राज़ ..
इन लकीरों मैं हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं !!
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मुझे भी शौक़ हुवा मोहब्बत का
अघाज़ -इ -मुहब्बत मैं ही जान गिरवी रखनी पड़ी .......
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अक्ल हर बार दिखाती थी जले हाथ अपने ..
दिल ने हर बार कहा आग पराई ले ले !!
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मुझे तिष्ना.. लबों की याद मे पीने नहीं देती
उठाता जा रहा हूँ .. टूटता जाता है पैमाना ..!!
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शाम होते ही शमा को बुझा देता हूँ ..
इक दिल ही काफी है तेरी याद मैं जलने के लिए !!

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खैरात मैं मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ..
मैं अपने ग़ममें रहता हूँ नवाबो की तरह !!

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फ़राज़ ' अपने सिवा है कौन तेरा ..
तुझे तुझ से जुदा देखा ना जाए !!
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मैं खुद को भूल चुका था मगर जहावाले ..
उदास छोड़ गए आईना दिखाके मुझे !!
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किस तरह उसको मई दरिया की रवानी कर दूं ..
बर्फ है और वो पिघलना भी नहीं चाहता है !!



तेरे दस्त -इ -सितम का अज्ज़ नही ..
दिल ही काफिर था जिस ने आह ना की !!

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इसी में इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी ..
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में !!

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निजाम इस मैकदे का इस कदर बिगड़ा है ऐ साकी ..
उसी को जाम मिलता है जिसे पीना नहीं आता !!

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दिल भी इक जिद पे अड्डा है किसी बचे की तरह
या तो सब कुछ चाहिए , या फिर कुछ भी नहीं .

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वोह दिल का हमसफ़र है येही पहचान है उसकी ..
जहाँ से भी गुज़रता है सलीका छोड़ जाता है ! !
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हम ना बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ फ़राज़ ..
हम जब भी मिलेंगे अंदाज़ पुराना होगा !!

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तुम तक़ल्लुफ़ को भी इखलास समझते हो 'फ़राज़ '..
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलानेवाला !!

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तू भी दिल को इक लहू की बूंद समझा है 'फ़राज़ '..
आँख गर होती तो कतरे में समंदर देखता !!
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नर्म जज़्बात , भली बातें , मोहज्ज़ाब लहजे ..
पहली बारिश में ही यह रंग उतर जाते हैं !!
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कल ख़ुशी थी दामन में , आज सिर्फ दर्द है उनका
वो भी था करम उनका , ये भी है करम उनका

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ये जो रात दिन की हैं गर्दिशें , यह जो रोज़ -ओ -शब् के हैं सिलसिले
हैं अज़ल से उन के नसीब मैं .. वही दूरियां वही फासले ..

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तो ये तय है के अब उम्र भर नहीं मिलना
तो फिर ये उम्र ही क्यूँ .. गर तुझ से नहीं मिलना !!
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किसी बेवफा की खातिर ये जनून फ़राज़ कब तक
जो तुम्हें भुला चूका है उसे तुम भी भूल जाओ


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थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे तुकडे
देखने हम भी गए .. पर तमाशा ना हुआ !!
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मसरूफियत ये मेरी गर तुझसे नहीं , तोह जाया है ..
गम हुआ है तुझमे जो उस्सने खुदा को पाया है !!

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बंदिशें हम को किसी हाल गवारा ही नहीं ..
हम तो वो लोग हैं दीवार को दर करते हैं !

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रोने से और इश्क में बे -बाक हो गए ..
धोये गए हम ऐसे की बस पाक हो गए
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ग़ालिब ना कर हुज़ूर में तू बार -बार अर्ज़ ..
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर !!

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भटके हुए फिरते हैं कई लफ्ज़ जो दिल मैं ..
दुनिया ने दिया वक़्त तो लिक्खेंगे किसी दिन !!

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जो तुम बोलो बिखर जायें , जो तुम चाहो संवर जायें ..
मगर यूं टूटना जुरना बुहत तकलीफ देता है

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कुछ ऐसे हादसे भी ज़िन्दगी में होते हैं 'फ़राज़ '..
के इंसान बच तो जाता है मगर जिंदा नहीं रहता !!
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Thursday, March 18, 2010

Love, Lust and Marriage

The Difference in Love, Lust and Marriage !

LOVE - When your eyes meet across a crowded room.
LUST - When your tongues meet across a crowded room.
MARRIAGE - When you try to lose your spouse in a crowded room

LOVE - When in- course is called "making love".
LUST - When in- course is called "scre_ing."
MARRIAGE - When in- course is a town in Pennsylvania

LOVE - When you share everything you own.
LUST - When you steal everything they own.
MARRIAGE - When the bank owns everything.

LOVE - When it doesn't matter if you don't cli-max.
LUST - When the relationship is over if you don't cli-max.
MARRIAGE - When...uh...what's a cli-max?

LOVE - When you write poems about your partner.
LUST - When all you write is your phone number.
MARRIAGE - When all you write is checks.

LOVE - When you're only interested in doing things WITH your partner.
LUST - When you're only interested in doing things TO your partner.
MARRIAGE - When you're only interested in your golf score.

LOVE: When you take a bubble bath together
LUST: When you take a bath in Jell-O together
MARRIAGE: When you give the kids a bath

LOVE: Giving your love some candy
LUST: Thinking you are the candy
MARRIAGE: Scraping candy off of the carpet

Now tell me what’s 'Love Marriage’?

Tuesday, March 16, 2010

....जावेद अख़्तर

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
प्यार की राह के हमसफ़र
किस तरह बन गये अजनबी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
फूल क्यूँ सारे मुरझा गये
किस लिये बुझ गई चाँदनी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

कल जो बाहों में थी
और निगाहों में थी
अब वो गर्मी कहाँ खो गई
न वो अंदाज़ है
न वो आवाज़ है
अब वो नर्मी कहाँ खो गई
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

बेवफ़ा तुम नहीं
बेवफ़ा हम नहीं
फिर वो जज़्बात क्यों सो गये
प्यार तुम को भी है
प्यार हम को भी है
फ़ासले फिर ये क्या हो गये
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी -----------जावेद अख़्तर

Friday, February 19, 2010

मराठी कवि..............




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काटा रुते कुणाला,आक्रंदतात कोणी
मज फूल ही रुतावे हा दैवयोग आहे

सांगू कशी कुणाला कळ आतल्या जीवाची
चिर-दाह वेदनेचा मज शाप हाच आहे

काही करू पहातो रुजतो अनर्थ तेथे
माझे अबोलणेही विपरीत होत आहे

हा स्नेह वंचना की काहीच आकळेना?
आयुष्य ओघळोनी मी रिक्त-हस्त आहे----शांता ज. शेळके

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हृदय फेकले तुझ्या दिशेने, झेलाया तू गेलीस पटकन
गफलत झाली परि क्षणांची; पडता खाली फुटले खळ्कन्‌ !

हृदय फेकले तूही जेंव्हा, सुटले तेही,पडलेही पण -
- तुटले नाही, फुटले नाही नाद निघाला केवळ ‘खणकन्‌’ !!

गोष्ट येवढी इथेच थांबे ! अशा गोष्टींना नसतो ‘नंतर’
‘खळ्कन्‌’ आणि ‘खणकन्‌’ यांतील कधी कुठे का मिटले अंतर ?!?!

मन पोलादी नकोच तुजसम असो असूदे काच जरीही
फुटून जाते क्षणी परंतु गंजायाची भीती नाही !!!- नेणिवेची अक्षरे, संदीप खरे

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वेड लागेल नाहीतर काय
कसा चंद्र! कसं वय !कसा चंद्र! कसं वय !
कशी तुझी चांदण सय !कसा निघेल इथुन पाय ?
वेड लागेल नाहीतर काय !
अंगामध्ये भिनत्येय वीज !नाही जाग,नाही नीज !
दंव पडतंय शब्दांवर,धुकं येतंय अर्थावर !
कसा निघेल इथुन पाय ?वेड लागेल नाहीतर काय !
उभा आहे मस्त खुशाल !अंगावर थंडीची शाल !
गुलाब तिच्या गालांवर,काटा माझ्या अंगावर !
कसा निघेल इथुन पाय ?वेड लागेल नाहीतर काय !
कशी मजा झाल्येय आज शांततेची सुद्धा गाज !
फुटतंय सरं आतल्याआत !जंतरमंतर झाल्येय रात !!
कसा निघेल इथुन पाय?वेड लागेल नाहीतर काय !
कशी झुळूक हलकीशी…!कशी हवा सलगीची…!
कसा गंध वार्यावर !राहील मन थार्यावर ?!
कसा निघेल इथुन पाय?वेड लागेल नाहीतर काय !
रात्र बोलत्येय तार्याशी;पहाट उभी दाराशी !
गूज आलंय ओठांशीपण बोलावं तरी कोणाशी…?
कसा निघेल इथुन पाय ?वेड लागेल नाहीतर काय !
चंद्र असा झरझरतोय…अबोलाही दरवळतोय…
मला आलाय अर्थ नवा;तिला ऐकु जायला हवा !!
कसा निघेल इथुन पाय ?वेड लागेल नाहीतर काय !- नेणिवेची अक्षरे, संदीप खरे
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कळलं तर हसा........

RISK






असे ही नवरे

मध्यंतरी सहज वाटले, नवऱ्यांच्या विविध छटा दाखविणारे किस्से गोळा करावेत. त्या ‘नाटय़’मय छटांचा हा गुलदस्ता! ही नवऱ्यांची षट्कोनी आकृती!
१) एक राजनेता नवरा election मध्ये बिझी असतो. बायको बाळंतपणासाठी गेलेली असते. निवडणुकीच्या निकालाची उत्सुकतेने वाट पाहणाऱ्या नवऱ्यास मतमोजणीच्या निकालाऐवजी घरचा फोन आधी येतो- ‘‘आपल्या पत्नीस ‘तिळे’ झाले आहे.’’ नेता काही विचार न करता इलेक्शन मूडच्या धुंदीत उत्तरतो, ``Oh no! I demand a recounting!!''
२) एक अरेरावी नवरा ऑफिसमधून घरी येतो. नेहमी स्वच्छ दिसणारे घर आज अस्ताव्यस्त पसरलेले दिसते. बिछाना तसाच, किचनमध्ये खरकटी भांडी, मुलांचे कपडे, खेळणी इकडेतिकडे and what not.
‘‘तू दिवसभर करतेस तरी काय?’’- तो पत्नीस फटकारतो. बायको हुशार. ती म्हणते- ‘‘त्या प्रश्नाचेच हे उत्तर आहे! आज मी खरोखर काही काम केले नाही. वाटले, त्यामुळे तरी तुम्हाला कळेल की मी दिवसभर रोज काय करते!’’
३) रंगेल नवरा- संशयी बायको
एका पार्टीत एक स्त्री Event Manager ला विचारते- ``Excuse me please! ती beautiful तरुणी drinks serve करत होती ती कोठे गेली? दिसत नाही इथे ती?’’
मॅनेजर- ‘‘आपणास काय हवे आहे, मॅडम? That girl or the drink?''
पत्नी- ‘‘दोन्ही नाही. Neither girl nor drink! I am searching for my husband!! माझा नवरा शोधते आहे मी!’’
४)Hen pecked नवरा-
एका जोडप्याचा वादविवाद जोरात चालू असतो. शेवटी ते प्रकरण संपवावे म्हणून नवरा ‘बरं! राहील!!’ असं म्हणून आपले ‘स्थान’ ग्रहण करतो व पुटपुटतो- ``I am a man of few words!'
पण त्यानेही बायकोचे समाधान होत नाही. ती टोमणा मारतेच- ``Yes! But you keep repeating them! समजलं?’’-
५) नवीन नवरा-
नुकत्याच लग्न झालेल्या नवरदेवाची त्याचे मित्र खूप तारीफ करतात- ‘‘तू खरंच भाग्यवान आहेस! तुझी बायको, आमची वहिनी, हरिणाक्षी आहे, her lips are like rose buds, तिचा आवाज कोकिळेसारखा आहे, ती गजगामिनी आहे, सिंहकटी आहे!! you're very fortunate!' त्यावर नवरदेव काय म्हणतात- ``I am not so sure! she does not seem to have a single characteristic of a HUMAN BEING! नुसती जनावरे काय कामाची?’’
६) शेवटी.. हा प्रेमळ नवरा-
प्रिन्सिपॉलसाहेबांशी झगडा झाल्यामुळे चिडलेली, नव्‍‌र्हस झालेली शिक्षिका टेन्शन घेऊन सायंकाळी घरी येते. नवरा तिला गरमागरम कॉफी देतो, इकडल्यातिकडल्या गमतीदार गोष्टींनी तिला हसवतो, तिचा मूड change करतो व तिला ‘‘असं चालतेच गं! cheer up!' वगैरे म्हणून तिचे सांत्वन करतो. ती स्त्री उत्साहित होते व म्हणते- ``Dear! you are really MY STRENGTH!' नवरा हसतो व तितक्याच प्रेमाने म्हणतो- ``And you are really MY WEAKNESS!''
......by..विजय .. इंदूर, म.प्र.

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वाइन फ्लू

मी प्यायला बसलो, की माझ्या भावनांना भरती येऊ लागते. मी उंचावर माळ्याची जी खोली केलीय तिथे बसतो. भावनांचे भरते येऊ लागते, त्या लाटांना ‘हाय टाइड’ म्हणतात. द्राक्षांची दारू माझी विशेष आवडती.
‘पश्चमस्तिष्कपुच्छ’ नावाचा अवयव तुम्हाला आहे का? मला आहे! बहुतेकांना तो असावा. तर त्या माझ्या शेपटीला दारूमुळे सूज आली. डॉक्टरने लिहून ‘गवाणकरांना ‘वाइन फ्लू’ झालाय. मेंदूच्या शेपटीत व्हायरस घुसलाय. मेंदूचा कॉम्प्युटर आता काम करणार नाही.’’
अहो, आजारी पडल्यावर मी सासूला ओळखलेच नाही. मी सौभाग्यवती सत्यभामेला म्हटले, ‘‘भामे, या बाईला जुने पत्र्याचे डबे आणि बाटल्या देऊन टाक.’’ ‘भामा’ म्हणाली, ‘‘भामटय़ा, ही माझी मम्मी आहे. तिला भंगारवाली समजतोस?’’ तरी बरे, सासरा आधीच ‘फोटो’त जाऊन बसलाय. नाहीतर, त्याला प्लंबर समजून सोसायटीचे सगळे पाइप बदलायला सांगितले असते.
माझी सुंदर मेहुणी श्रुती आधीच माझ्या गळ्यात पडली आहे, पण मला ‘वाइन फ्लू’ झाल्यावर ती गळ्यात पडून रडू लागली. माझ्या छातीला कान देऊन तिने ठोके मोजले. हृदयाचा ठोका- थांबला की हो! तिने तसेच रेलून, पडून राहावे म्हणून असे करता येते! रोजच असे आजार होतील, तर किती मौज येईल बरे! असे मला वाटले.
शेजारच्या कांदे मॅडम मला धरून आहेत! म्हणजे डॉक्टरकडे हळूहळू घेऊन गेल्या. बायकोने रागाने कांदेना बटाटे फेकून मारले, पण त्या शेजारधर्माला जागल्या. मला डॉक्टरकडे सोडायला रोज यायच्या. नवऱ्यालाही ‘सोडण्याच्या’ बेतात त्या आहेत. ‘सोडा’ आणायला मी त्यांनाच पाठवतो. सत्यभामा, माझी पत्नी चरफडत म्हणते, ‘‘गेलीय मेली माझ्या नवऱ्याला ‘पोचवायला.’ भामे, तुझा नवरा आधीच पोचलेला आहे.
‘वाइन फ्लू’मुळे माझे डोके तापायचे आणि पाय थंड पडायचे. सगळे घाबरून माझ्यापासून दूर राहायचे. त्यामुळे बायको मला जे गुद्दे मारायची, चापटय़ा लगवायची तेही बंद पडले. मात्र, मी या आजारात वस्तूही ओळखेनासा झालो. वॉशिंग मशीनला फ्रीज समजून त्यातच मी उरलेली आमटी, भाजी ठेवली. मिल्ककुकरमध्ये भात शिजवला. बँकेत गेलो, तेव्हा मॅनेजरच्या केबिनमध्ये शिरून ‘‘काऊंटरला का बसला नाहीस?’’ असे विचारत त्याच्याकडे पाचशे रुपये कॅश मागितली. तो घाबरला आणि पोलिसांना फोन फिरवू लागला. मी म्हटले, ‘‘उधार दे ना! मी परत करीन.’’ दुसऱ्या बँकेत मी गेलो आणि पाच पाच पैशांची नाणी थैलीभर दिली. म्हणालो, ‘‘नोट धिस पॉइंट! या नाण्यांचे रुपांतर मला नोटांमध्ये करून द्या.’’
या दोन्ही बँकांमधली माझी खाती रद्द करण्यात आली आहेत.
वाइन फ्लूच्या तंद्रीत मी ‘कोजागिरी’ला माळ्यावर जाऊन बसलो. पुन्हा ‘हाय टाइड’ आली. त्या धुंदीत ‘वाचकपत्र’ लिहिण्याऐवजी मी अग्रलेखच लिहिले! किती वरची पातळी बघा!
‘वाइन फ्लू’ बळावतो, तेव्हा पेशन्ट गाणे म्हणू लागतो. ‘तुझाही आहे शेवट वेडय़ा माझ्या पायाशी’ मी ऑफिसमध्ये जाऊन बॉसला ऐकवले. त्याने मला ‘सक्तीच्या’ रजेवर पाठवले. खरे तर ती ‘युक्ती’ची रजा होती. साला बॉस मला रजाच द्यायचा नाही. आता कसा घाबरला! आँ? आँ?..
नर्स फारच सुंदर असल्यामुळे मी रोज ‘टुश्’ करून घ्यायला जायचो. सुई टोचल्याची जाणीवच व्हायची नाही. एकदा तर नर्सला माझी दाढीच टोचली. वाइन फ्ल्यूची तंद्री! ताप डोक्यात- जायचा ना! डॉ. भिमाणी यांनी भिमाचे बळ लावून मेंदूच्या शेपटीचा ‘संसर्ग’ झालेला भाग कापून टाकला.
त्यानंतर मात्र मी सुधारलो. ‘सुधारस’ पिऊ लागलो. डॉक्टर भिमाणी यांनी पेशंट बरा झाला हे दोनच शब्दात सांगितले. ‘फाइन फ्लू’!
by ..माधव गवाणकर
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